आज सूरज से किरणे भी बहने सी लगी,
बादलो की ख़ामोशी सुन,
ये हवाएँ भी चुप रहने सी लगी,
इन बेताबिओं के शोर में,
ये धड़कने कहीं खो न जाये,
इस आरज़ू की चीस में,
ये आंखें भी नम रहने सी लगी |
मैं जिंदा हूँ,
ख्वाइशों को टटोलता रहता हूँ,
हाथों की लकीरों पे कुछ ढूँढता रहता हूँ,
वोह वक़्त, वोह समां,
जो सिर्फ मेरा हो,
मेरे दिल में बसी तस्वीरों से जोड़ता रहता हूँ,
उस पल के इंतज़ार में,
ये सांसें भी चुप रहने सी लगी |